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कविता

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विमल चंद्र पांडेय


जितनी बातें हिदायतों के रूप में कही गई थीं
ज्यादातर अपना अर्थ खो चुकी थीं
माँ की शिक्षाओं ने कई बार नुकसान भी पहुँचाया था
क्योंकि सबने उन्हें मेरी तरह नहीं माना था
उसी तरह जैसे आधी से ज्यादा दुर्घटनाओं में मेरी गलती नहीं थी
सड़क पर चलने वाले बहुत सारे लोग नहीं मानते थे ट्रैफिक के नियम

सरकार टैक्स जमा करने के फायदे बताती थी
प्यार करने के फायदे किसी ने नहीं बताए
जबकि वह टैक्स जमा करने से कहीं अधिक जरूरी था

हत्यारे राज्यों में घूमने के लिए सुंदर विज्ञापन बनाए गए थे
सेना में आने के लिए नए खून को आमंत्रित किया जाता था
देश की सेवा करने के बहुत सारे रास्ते थे जो सुंदर और जोशीले थे
देश किताबों में बहुत बहादुर था
बच्चों को नैतिक शिक्षा की किताब सबसे अधिक पसंद थी

जिसे भूख लगती थी उसे मौत की हद तक लगती थी
जो खरीद सकता था उसके सामने पूरी दुनिया बिकने को तैयार थी
जिस दुनिया में भूख से मौतें हो रही थीं
वहीं भूख से खेलने वाले खेल भी ईजाद कर लिए गए थे
सारी हिदायतों के बावजूद कुछ मौतें लगातार होती थीं
जिनका कोई जिम्मेदार नहीं था

अगर दुनिया में निर्देशों को माना जाता
तो शायद कविता लिखने की किसी को जरूरत न पड़ती
अनजान वस्तुओं को हाथ न लगाएँ
और हमारी खोई हुई सारी यादें
हमें एक दिन नक्षत्रवन की उसी बेंच पर मिल जातीं
जहाँ बैठकर तुमने मेरे कंधे पर सिर रखा था
और मेरे नाखून काटे थे

कहीं कोई चेतावनी नहीं मानी जाती थी
हर चीज के नए-नए उपयोग पैदा कर लिए जाते थे

रेलगाड़ी के शौचालय हमारी औरतों की तरह सँभालते थे हमारी कुंठाएँ
हम पैंट की चेन बंद करते हुए कलम खोंसे
शरीफ इनसानों की तरह बाहर निकलते थे

 


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